
एससी एसटी और ओबीसी के अंदर एक और वर्ग बनाने पर विचार, 7 जजों की एक संवैधानिक बेंच करेगा विचार
सुप्रीमकोर्ट के पांच जजों की पीठ ने कहा है कि राज्य को SC/ST श्रेणी में वर्गीकरण करने का अधिकार है। कोर्ट ने पूर्व के 5 जजों के फैसले से असहमति जताई है। पूर्व फैसले में कोटे में कोटा की मनाही थी। 5 जजों की दो पीठों में मतभिन्नता के कारण अब यह मामला बड़ी पीठ को जाएगा।
सुप्रीम कोर्ट की मंशा है कि अनुसूचित जाति, अनसूचित जनजाति और पिछड़े वर्ग के आरक्षण का लाभ इस समूह के उन लोगों को मिले जो अब भी अत्यधिक पिछड़े हुए हैं।
सुप्रीम कोर्ट अब ये विचार कर रहा है कि क्या एससी एसटी और ओबीसी के अंदर आरक्षण का लाभ जरूरतमंदों को पहुंचाने के लिए इन समूहों में सब कैटेगरी बनाई जा सकती है।
देश की सर्वोच्च अदालत ने इस मामले पर विचार करने के लिए 7 जजों की एक संवैधानिक बेंच गठन करने का फैसला लिया है। ये खंडपीठ इस विषय पर विचार करेगी कि क्या एससी, एसटी और ओबीसी आरक्षण सूची के अंदर ही एक और उपसूची तैयार की जाए, ताकि इसका फायदा इन्ही तीन समूहों के अत्यंत पिछड़े लोगों को मिल सके।
इस मामले पर सुनवाई के दौरान गुरुवार को अदालत ने कहा कि अगर राज्य सरकार के पास आरक्षण देने की शक्ति होती है, तो वह उप-वर्गीकरण करने की भी शक्ति रखती है और इस प्रकार के उप-वर्गीकरण को आरक्षण सूची के साथ छेड़छाड़ के बराबर नहीं माना जा सकता है।
इससे पहले 5 जजों की बेंच ने कहा कि उप वर्गीकरण नहीं किया जा सकता है. लेकिन आज पांच जजों की बेंच ने कहा कि उप वर्गीकरण विधिसम्मत है।
सुप्रीम कोर्ट की 5 जजों की बेंच ने कहा है कि राज्य की विधानसभा अनुसूचित जाति समूह के अंदर कुछ विशेष जातियों को विशेष सुविधा देने के लिए कानून बना सकती है।
2005 में ईवी चिन्नैया बनाम आंध्र प्रदेश राज्य में कहा गया था कि जातियों के अंदर उप जातियों का वर्गीकरण अवैधानिक है. अब गुरुवार के इस फैसले के बाद ये मामला बड़ी बेंच में जाएगा।