
कांग्रेस के शासन वाले राज्य राजस्थान, छत्तीसगढ़, पंजाब और पुडुचेरी जल्द ही एक विशेष विधानसभा का सत्र बुलाने जा रहे हैं, जिसमें केंद्र सरकार द्वारा पारित कृषि विधेयकों
के असर को कम करने के लिए विधेयक पारित करवाए जाएंगे।
कांग्रेस शासित राज्यों का यह कदम पार्टी की अध्यक्ष सोनिया गांधी के निर्देश के बाद आया है जिसमें उन्होंने संविधान की धारा 254 (2) के तहत विधेयक लाने के लिए कहा था। सोनिया गांधी ने कहा था कि केंद्रीय कानून राज्य के अधिकारों का हनन करते हैं और इससे कृषि विरोधी कदम है।
राजस्थान जहां अध्यादेश लाने की योजना बना रहा है, वहीं छत्तीसगढ़ और पंजाब केंद्र सरकार के कानूनों के मुकाबले कानूनी रास्ते खोज रहे हैं वही इस बीच पुडुचेरी द्वारा बिल का मसौदा बनाना बाकी है।
कांग्रेस की कानूनी मामलों की टीम बिल का मसौदा बना चुकी है और इसके आधार पर राज्य को अपने अपने बिल बनाने के लिए भेज दिया गया।
कांग्रेस के एक नेता ने बताया कि बिल का मसौदा अभिषेक मनु सिंघवी समेत कई कानूनविद्व की टीम ने बनाया है इसमें सभी संभावित अनुच्छेदों को शामिल किया गया है और केंद्र के कानून के विवादास्पद प्रावधानों को हटाते हुए एमएसपी को अनिवार्य किया गया है
“केंद्र सरकार ने पिछले महीने संसद के मानसून सत्र में कृषि विधेयक पास करवाए थे और इस मुद्दे पर उसके सबसे करीबी और पुराने सहयोगी अकाली दल ने उससे नाता तोड़ दिया था।
केंद्र सरकार के कानून को के असर को कम करने के लिए राज्यों में विधेयक पारित करने की रणनीति नई नहीं है, इससे पहले एनडीए सरकार ने 2015 में अपने भाजपा शासित राज्यों को अपना कानून लाने के लिए कहा था जो कि भूमि अधिग्रहण कानून 2013 के संशोधन को लेकर चल रहे गतिरोध से बचने के लिए था। 2013 का भूमि अधिग्रहण कानून यूपीए सरकार ने पास किया था।
हालांकि सोनिया गांधी ने कांग्रेस शासित राज्यों को बिल को पारित कराने की संभावनाओं को तलाशने के लिए कहा है। साथ ही कांग्रेस नेताओं को इस बात की चिंता है कि राज्यों के बिल को आखिर कैसे कानून बनाया जाए जब इसके लिए राज्यपाल और साथ ही साथ राष्ट्रपति की भी मंजूरी जरूरी होती है।
छत्तीसगढ़ की सरकार इस बिल को कानूनी रास्ते के जरिए पास कराना चाहती है अगर इसे राज्यपाल या राष्ट्रपति की मंजूरी नहीं मिलती है। छत्तीसगढ़ कांग्रेस में एक नेता ने बताया कि कृषि राज्य का विषय होता है और ऐसे में बिल को रोकने का कोई औचित्य नहीं है लेकिन तब भी अगर गवर्नर और राष्ट्रपति अपनी मंजूरी नहीं देते तो तो इस मुद्दे पर कोर्ट जाने से भी गुरेज नहीं किया जाएगा।
राज्यों के बिल ” प्रतीकात्मक विरोध
पंजाब के मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह ने भी हाल में अपने एक इंटरव्यू में कहा है कि राज्यपाल और राष्ट्रपति भी इस बिल को मंजूरी नहीं देंगे इसलिए सरकार कानूनी विकल्प अपना सकती है। वही पंजाब के कांग्रेस नेता प्रताप सिंह बाजवा का कहना है कि भले ही यह बिल विधानसभा से पास होने के बाद इसे मंजूरी नहीं मिले लेकिन इस मुद्दे पर जब विधानसभा एकजुट होकर बिल पारित करेगी तो एक संदेश जाएगा कि भले ही बिल को मंजूरी दिलवाने में हम सफल नहीं हो पाए लेकिन हम इस बिल के खिलाफ हैं इसलिए इस कदम को प्रतीकात्मक कहना ठीक होगा।
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