
इस समय श्राद्ध पक्ष चल रहा है। इस बार श्राद्धपक्ष 2 सितंबर से आरंभ होकर 17 सितंबर तक रहेगा। ऐसा माना जाता है कि इस पक्ष के दौरान पितरदेव 16 दिनों के लिए अपने-अपने प्रियजनों से मिलने और उन्हें आशीर्वाद देने के लिए धरती पर आते हैं। पितृपक्ष में लोग अपने पूर्वजों को प्रसन्न करने के लिए उन्हें तर्पण और भोग लगाते हैं। पितृपक्ष में पितरों को बिना तर्पण दिए श्राद्ध कर्म पूरा नहीं होता है। पितरों को तर्पण देने में कुश का विशेष महत्व होता है। कुशा एक प्रकार की घास होती है शास्त्रों में कुश को बहुत ही पवित्र माना गया है। हिंदू धर्म में किसी भी शुभ कार्य या धार्मिक अनुष्ठान को संपन्न करते समय कुशा का प्रयोग जरूर किया जाता है।
पितृपक्ष में किए जाने वाले श्राद्ध में तिल और कुश की महत्ता इस मंत्र के द्वारा बताई गई है। जिसमें भगवान विष्णु कहते हैं कि तिल मेरे पसीने से और कुश मेरे शरीर के रोम से उत्पन्न हुए हैं। कुश का मूल ब्रह्मा, मध्य विष्णु और अग्रभाग शिव का जानना चाहिए। ये देव कुश में प्रतिष्ठित माने गए हैं। ब्राह्मण, मंत्र, कुश, अग्नि और तुलसी ये कभी बासी नहीं होते, इनका पूजा में बार-बार प्रयोग किया जा सकता है।
किसी भी तरह के धार्मिक अनुष्ठान में कुश बहुत ही आवश्यक पूजा सामग्री मानी जाती है। कुश को अनुष्ठान करते समय उसे अंगूठी की भांति तैयार कर हथेली की बीच वाली उंगली में पहनी जाती है। अंगुठी के अलावा कुश से पवित्र जल का छिडकाव भी किया जाता है। मानसिक और शारीरिक पवित्रता के लिए कुश का उपयोग पूजा में बहुत ही जरूरी होता है। कुश का प्रयोग ग्रहण के दौरान भी उपयोग में लाया जाता है। ग्रहण से पहले और ग्रहण के दौरान खाने-पीने की चीजों में कुश डाल कर रख दिया जाता है। ताकि खाने की चीजों की पवित्रता और उसमें किसी भी तरह के कीटाणु प्रवेश न कर सके। कुश घास को लेकर रिसर्च में भी पाया गया है कि कुश घास प्राकृतिक रूप से छोटे-छोटे कीटाणुओं को दूर करने में बहुत ही सहायक होती है। कुश एक तरह से प्यूरिफिकेशन का काम करता है। पानी में कुश रखने से छोटे- छोटे सूक्ष्म कीटाणु कुश घास के समीप एकत्रित हो जाते हैं।