
फौज का एक लेफिनेंट जो एक राजा भी था। जिसके लिए आन बान और शान सबसे पहले थी। जिनसे इसी शान की ख़ातिर अपनी जान तक गंवा दी। ऐसे राजा के हत्यारें वो पुलिस वाले थे। जिन्होंने घेरकर राजा मानसिंह और उनके दो साथियों को मौत के घाट उतार दिया। या फिर वो मुख्यमंत्री जिसने राजा को मारने का हुक्म दिया था। के राजा मानसिंह और उनके दो साथियों ठाकुर सुम्मेर सिंह व हरी सिंह की राजस्थान पुलिस ने 21 फरवरी 1985 को मुठभेड़ में हत्या कर दी थी। इस हत्याकांड के बाद राजा मानसिंह के दामाद विजय सिंह ने तत्कालीन डीग सीओ कान सिंह भाटी, थाना प्रभारी वीरेंद्र सिंह सहित अन्य पुलिसकर्मियों के खिलाफ हत्या की रिपोर्ट दर्ज कराई थी। जयपुर सेशन कोर्ट में मामले की सुनवाई शुरू हुई थी। पीड़ित पक्ष के प्रार्थना पत्र पर सर्वोच्च न्यायालय ने दिसंबर 1990 में मुकदमे की सुनवाई मथुरा जिला जज की अदालत में शुरू हुई। जिला जज साधना रानी ठाकुर ने सीओ कानसिंह भाटी सहित 11 पुलिसकर्मियों को राजा मानसिंह, ठाकुर सुम्मेर सिंह व हरी सिंह की हत्या का दोषी करार देते हुए पुलिस कस्टडी में जेल भेजने के आदेश दिए।
बुधवार को अदालत सभी की सजा पर फैसला सुनाएगी। पीड़ित के अधिवक्ता नारायण सिंह विप्लवी ने बताया कि अदालत ने सभी 11 लोगों को एक राय होकर हत्या करने और बलवे का दोषी ठहराया है। सजा पर अदालत ने फैसला सुरक्षित रख लिया है। इस दौरान अदालत में सीबीआई की ओर से अधिवक्ता विपिन कुमार व नीलेश मलिक भी मौजूद रहे।
हत्या के बाद लोगों का गुस्सा देख बदलना पड़ा था मुख्यमंत्री
भरतपुर राजघराना आन, बान, शान के लिए प्रसिद्ध रहा है। राजा मानसिंह हत्याकांड के जड़ में भी आन, बान शान ही रही। विरोधी दलों द्वारा अपने झंडों को उतारे जाने पर राजा मानसिंह कुपित हो गये और उसके बाद जोंगा जीप से मुख्यमंत्री के हेलीकॉप्टर में टक्कर मारने, मंच ध्वस्त करने के बाद अंत यह हुआ कि पुलिस ने उन्हें घेरकर गोलियां चलाते हुए उनकी हत्या कर दी। उस समय इस हत्याकांड से लोगों में राजस्थानक में कांग्रेस की सरकार के विरोध में इतना रोष फैल गया कि कांग्रेस को राजस्थान में मुख्यमंत्री बदलना पड़ गया था।
इस हत्याकांड के कारण उस समय के राजस्थान के मुख्यमंत्री शिवचरण माथुर को मुख्यमंत्री पद से हाथ धोना पड़ गया था। लोगों में इस हत्याकांड के बाद शिवचरण माथुर के प्रति जबरदस्त गुस्सा था। तत्काल कांग्रेस आलाकमान ने शिवचरण माथुर को इस्तीफा देने का निर्देश दिया और माथुर के इस्तीफा देने पर हीरालाल देवपुरा को मुख्य मंत्री बनाया गया।