
डब्ल्यूएचओ की प्रधान वैज्ञानिक सौम्या स्वामीनाथन ने कहा, जनवरी से पहले टीका आने की उम्मीद नहीं, एक से डेढ़ साल में टीका लाने की कोशिश
देश और दुनिया का हर आदमी इस समय कोरोना वायरस से लड़ने के लिए एक अदद टीके का इंतजार कर रहा है, लेकिन टीका बनने में काफी समय लग सकता है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन डब्ल्यूएचओ की प्रधान वैज्ञानिक और आईसीएमआर की पूर्व अध्यक्ष सौम्या स्वामीनाथन ने कहा है कि आमतौर पर किसी भी बीमारी के टीके विकसित होने में 5 से 10 साल लगते हैं लेकिन कोरोना वायरस की खतरे को देखते हुए अब इसे अधिकतम डेढ़ साल में पूरा करने के प्रयास हैं।
स्वामीनाथन कहती है की उन्हें उम्मीद नहीं है कि जनवरी से पहले टीका आ जाएगा। भारत में जो टीका बन रहा है उसको लेकर यह गारंटी नहीं है कि यह फेस 3 में जाएगा तो सफल हो पाएगा। ज्यादातर देखा गया है कि 10 में से सिर्फ दो तीन टीके के ही सफल हो पाते हैं।
स्वामीनाथन ने दो तरह की दवाइयों का जिक्र किया, जिसका कोरोना वायरस से लड़ने के लिए ट्रायल चल रहा है। उन्होंने बताया कि डेक्सामेथासोन नाम की दवाई का असर ऐसे मरीजों में दिखा है जिन्हें वेंटीलेटर की जरूरत होती है जबकि रेमेडेसीविर दवाई से अस्पताल में भर्ती रहने की अवधि कम रहने में मदद मिलती है। उन्होंने बताया कि लैब में बनाए गए सिंथेटिक एंटीबॉडी का ट्रायल चल रहा है।
डब्ल्यूएचओ की प्रथम वैज्ञानिक स्वामीनाथन कहती है कि कई बार किसी टीके का साइड इफेक्ट 5 से 10 साल के बाद देखने को भी मिलता है। ऐसा एक या दो बार देखने को भी मिल चुका है जब साइड इफेक्ट सालों बाद देखने को मिला। इसलिए रेगुलेटर की यह जिम्मेदारी होती है कि वे ट्रायल के दौरान इसे बेहतर तरीके से जांच परख लें। इस बात का ध्यान रखें कि यह वैक्सीन लोगों को दी जानी है इसलिए किसी भी तरह की जल्दबाजी दिखाना खतरे से खाली नहीं होगा।
———