
प्रदेश की भाजपा-जजपा गठबंधन की सरकार में तीन अध्यादेशों के खिलाफ चल रहा किसान आंदोलन पहला नहीं है इससे पहले भी प्रदेश में कई बड़े किसान आंदोलन हुए हैं। बंसीलाल की सरकार हो या फिर भजनलाल और ओमप्रकाश चौटाला का राज, इन तीनों मुख्यमंत्रियों के कार्यकाल में कई बड़े किसान आंदोलन हुए हैं। इन आंदोलनों में पुलिस की लाठी और गोली से कई किसानों की मौत हुई, जिनके बाद प्रदेश में सत्ता परिवर्तन होता चला गया गौरतलब है कि हरियाणा मे हरियाणा में 1980 , 1991, 1996 , 1999 , 2005 ,और अब 2020 तक होते रहे किसान आंदोलनों का लंबा इतिहास है वही पंजाब सरकार तीन अध्यादेशों को लागू करने से पहले ही मना कर चुकी है
हरियाणा में किसान आंदोलनों का लंबा इतिहास है फिलहाल केंद्र सरकार के तीन अध्यादेशों के खिलाफ प्रदेश में आंदोलन चल रहा है, जिसमें किसानों को उनकी फसलों का न्यूनतम समर्थन मूल्य मिलने की गारंटी नहीं है एमएसपी की मांग कर रहे किसानों को दो दिन पहले कुरुक्षेत्र के पिपली में जहां लाठीचार्ज का शिकार होना पड़ा, वहीं विभिन्न जिलों में किसानों ने विरोध प्रदर्शनों के जरिये सरकार तक अपनी बात पहुंचाने में कोई कसर नहीं छोड़ी
भारतीय किसान यूनियन के बैनर तले चल रहे इस आंदोलन को प्रमुख विपक्षी दल कांग्रेस और इनेलो का समर्थन हासिल है। कुछ भाजपा सांसद और विधायक भी किसानों पर बल प्रयोग के गठबंधन सरकार के फैसले पर अंगुली उठा रहे हैं
हरियाणा में 1980 में पहला किसान आंदोलन हुआ। जनता पार्टी की सरकार टूटने के बाद भजनलाल उस समय कांग्रेस में चले गए थे 1977 में चौ. देवीलाल जब मुख्यमंत्री थे, तब उन्होंने मीटर सप्लाई के स्थान पर बिजली के फ्लैट रेट और स्लैब प्रणाली लागू की। भजनलाल ने मुख्यमंत्री बनने के बाद देवीलाल सरकार की इस व्यवस्था को छेड़ने की कोशिश की। किसानों ने जब इसका विरोध किया तो बड़ा आंदोलन खड़ा हो गया। उस समय पुलिस की गोली से जिला भिवानी के फरटिया गांव का महावीर सिंह शहीद हो गया
बिजली के फ्लैट रेट और स्लैब प्रणाली से छेड़छाड़ के विरोध में तत्कालीन विधायक हीरानंद आर्य, बलबीर ग्रेवाल और रण सिंह मान के नेतृत्व में 51 सदस्यीय प्रतिनिधिमंडल तत्कालीन राज्यपाल से मिला। इसके बावजूद भी बात नहीं बनी तो किसानों ने भिवानी में बड़ी रैली का आयोजन किया, जिसमें किसान ने संर्घर्ष समिति का गठन करते हुए सरकार पर दबाव बनाया। आखिरकार भजनलाल को उस रैली के बाद अपना फैसला वापस लेना पड़ा था
प्रदेश में दूसरा बड़ा आंदोलन 1991 के दौरान हुआ। उस समय भी मुख्यमंत्री भजनलाल ही थे। उन्होंने तब बिजली के रेट बढ़ा दिए थे, जिसके विरोध में किसानों ने बिजली के बिल देने बंद कर दिए। इस आंदोलन का केंद्र आज का दादरी जिला था। विरोध कर रहे किसानों पर दादरी जिले के कादमा गांव में पावर हाउस पर पुलिस ने गोली चलाई, जिसमें आधा दर्जन किसान मारे गए थे और कई घायल हो गए थे। इसके बावजूद किसानों ने बिजली के बिल नहीं भरे और यह लंबित पड़े रहे। इसके बाद 1996 में सरका बन गई और भाजपा के सहयोग से बंसीलाल की हविपा की सरकार बन गई। उस समय भी किसानों ने बिजली के बिल नहीं दिए। तब किसानों ने महेंद्रगढ़ व दादरी की सीमा पर पड़ने वाले गांव मंढियाली में आंदोलन चलाया, जिसमें पुलिस की गोलीबारी के दौरान पांच किसान मारे गए।
किसान आंदोलनों के बाद इनेलो प्रमुख ओमप्रकाश चौटाला की सरकार बन गई। यह 1999 की बात है। तब चौटाला ने विधानसभा भंग कर चुनाव कराए तथा नारा दिया कि न मीटर होगा और न मीटर रीडर रहेगा। इस नारे के बाद 2000 में चौटाला की बहुमत के साथ सरकार बन गई। हालांकि तब भाजपा भी इस सरकार में साझीदार थी। सरकार बनने के बावजूद चौटाला ने किसानों पर बिजली के बिल भरने का दबाव बनाया। उस समय जींद जिले के प्रमुख किसान नेता घासी राम नैन ने आंदोलन की बागडोर संभाली और दादरी व बाढ़डा के लोगों ने उन पर चौटाला से मिलवाने का दबाव बनाया। किसानों को जब पता चला कि चौटाला जींद के कंडेला के रास्ते से होकर चंडीगढ़ जाने वाले हैं तो उन्होंने चौटाला का रास्ता रोकने की कोशिश की। तब वहां हुई गोलीबारी में आठ किसान मारे गए थे, जिसके बाद चौटाला की सरकार चली गई।
चौटाला की सरकार जाने के बाद कांग्रेस नेता भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने जींद से दिल्ली तक किसान यात्रा निकाली और 2005 में सरकार बनाई। हुड्डा ने सबसे पहले सरकार में आते ही किसानों के न केवल 1600 करोड़ रुपये के बकाया बिजली के बिलों को माफ किया, बल्कि चौटाला की सरकार में तोड़ी गई स्लैब प्रणाली को भी फिर से बहाल कर दिया। उसके बाद राज्य में कोई उग्र किसान आंदोलन नहीं हुआ। प्रदेश में 2014 से 2019 तक भाजपा की सरकार रही, लेकिन तब भी कोई किसान आंदोलन नहीं हुआ। अब भाजपा-जजपा गठबंधन की सरकार में केंद्र सरकार के तीन अध्यादेशों मंडी व्यवस्था, अनाज के खुले व्यापार और ठेका खेती के विरोध में किसान आंदोलन कर रहे हैं किसानों की मांग है कि इन अध्यादेशों में किसान को न्यूनतम समर्थन मूल्य की गारंटी दी जाए