
भाजपा में सत्ता का स्वाद और वंशवाद
नई दिल्ली।
भारतीय जनता पार्टी का हमेशा से यह कहना रहा है कि वह परिवारवाद और वंशवाद की सियासत पसंद नहीं करती है और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इसका सबसे बड़ा उदाहरण है क्योंकि वह जमीन से उठ कर तमाम संघर्ष करने के बाद प्रधानमंत्री बन पाए हैं। अपनी राजनीतिक प्रतिद्वंदी कांग्रेस पर भी भाजपा राजनीतिक वंशवाद और परिवारवाद का हवाला देते हुए निशाना साधती है।
अभी कुछ दिन पहले ही भाजपा में हाल में शामिल हुए ग्वालियर के महाराजा ज्योतिरादित्य सिंधिया भारतीय राजनीति में वंशवाद के सबसे बड़े प्रतीक रहे हैं।
पिछले कुछ समय से दूसरी पार्टियों के बड़े राजनीतिक परिवारों से संबंध रखने वाले कई नेताओं को भाजपा में एंट्री मिली है। इसके अलावा भाजपा के कई बड़े नेताओं के बेटों और बेटियों को भी लोकसभा से लेकर विधानसभा में जगह मिली हुई है।
हालांकि भाजपा का इस परिवारवाद को लेकर अपना अलग तर्क रहा है। उसका कहना है कि भाजपा में शायद ही ऐसा कोई उदाहरण होगा जहां किसी एक परिवार से एक से ज्यादा सदस्यों को सरकार में पद मिल पाया है। पार्टी का कहना है कि लोकसभा और विधानसभा चुनाव के लिए राजनेताओं के बेटे और बेटियों को टिकट देना अलग बात है लेकिन किसी भी एक परिवार से दो सदस्यों को एक साथ मंत्री पद या कोई दूसरा पद नहीं दिए जाने की परंपरा भाजपा में बनी हुई है।
भाजपा के एक नेता ने कहा कि रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह के बेटे पंकज सिंह यूपी से विधायक हैं लेकिन उनको उत्तर प्रदेश की भाजपा सरकार में मंत्री नहीं बनाया गया है।
लोकसभा में भाजपा के 303 सांसद हैं और उसमें से कई सांसदों की पृष्ठभूमि राजनीतिक परिवारों से है।
राजनीतिक विश्लेषक कहते हैं कि भाजपा ने हाल के दिनों में वंशवाद की परिभाषा को अपने हिसाब से लिखना शुरू कर दिया है उसे जहां लगता है कि इस नेता की वजह से उसकी ताकत बढ़ेगी और सत्ता हाथ आएगी तो इसे वह अपने साथ मिलाने की कोशिश करती है अब चाहे उसका कनेक्शन राजनीतिक परिवार से भले रहे। इसे सिलेक्टिव वंशवाद कहां जा सकता है
इसी तरह का फार्मूला अपराधिक पृष्ठभूमि वाले नेताओं को भी साथ में मिलाने को लेकर अपनाया जा रहा है।
अभी हाल ही में राज्यसभा के लिए भेजे गए जिन नामों को भाजपा की ओर से मंजूरी मिली है उनमें से कई नेताओं के रिश्तेदार राजनीति में रहे हैं या फिर राजघराने से संबंध रखते हैं।
ज्योतिरादित्य सिंधिया के अलावा राज्यसभा में भाजपा की ओर से भेजे गए विवेक ठाकुर पूर्व केंद्रीय मंत्री सीपी ठाकुर के बेटे हैं। सीपी ठाकुर अटल बिहारी वाजपेई सरकार में स्वास्थ्य मंत्री रह चुके हैं। नीरज शेखर को भी राज्यसभा भेजा गया है, वह पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर के बेटे हैं।
महाराष्ट्र के सतारा के राजघराने से उदयनराजे भोंसले को भी राज्यसभा की सदस्यता दी गई है। भोसले एनसीपी से सांसद रह चुके हैं और उनके भाई विधायक शिवेंद्रराजे एनसीपी छोड़कर बीजेपी में शामिल हो गए हैं।
अरुणाचल प्रदेश के पूर्व विधानसभा स्पीकर नेबम रेबिया राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री नबाम तुकी के भाई हैं, उनको भी भाजपा ने राज्यसभा में भेजा है। मणिपुर के तीतर राजा लिसेम्बा संजाओबा को राज्यसभा भेजा गया है।
लोकसभा में भी हिमाचल प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल के बेटे अनुराग ठाकुर, पूर्व केंद्रीय मंत्री प्रमोद महाजन की बेटी पूनम महाजन, राजस्थान की पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के बेटे दुष्यंत सिंह, पूर्व केंद्रीय मंत्री गोपीनाथ मुंडे की बेटी प्रीतम मुंडे, दिल्ली के पूर्व मुख्यमंत्री साहिब सिंह वर्मा के बेटे प्रवेश साहिब सिंह वर्मा और कर्नाटक के मुख्यमंत्री येदुरप्पा के बेटे बी वाई राघवेंद्र, यूपी कैबिनेट मंत्री स्वामी प्रसाद मौर्य की बेटी संघमित्रा मौर्य, पूर्व केंद्रीय मंत्री यशवंत सिन्हा के बेटे जयंत सिन्हा, भाजपा सांसद मेनका गांधी के बेटे वरुण गांधी, महाराष्ट्र के पूर्व मंत्री एकनाथ खडसे की बेटी रक्षा खडसे और कांग्रेस के पूर्व नेता राधाकृष्ण विखे पाटील के बेटे सुजय विखे पाटील और पूर्व मुख्यमंत्री हेमवती नंदन बहुगुणा की बेटी रीता बहुगुणा जैसे नेता सांसद हैं।
राज्यों में भी वंशवाद की छाया देखने को मिल रही है। मध्यप्रदेश में शिवराज सिंह चौहान की हाल में हुए कैबिनेट विस्तार में ओम प्रकाश सकलेखा को शामिल किया गया है जो पूर्व मुख्यमंत्री वीरेंद्र सकलेखा के बेटे हैं। चौहान की कैबिनेट में वरिष्ठ भाजपा नेता कैलाश सारंग के बेटे विश्वास सारंग को भी जगह मिली है। महाराष्ट्र में भी पूर्व मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस की भाजपा सरकार में केंद्रीय मंत्री गोपीनाथ मुंडे की बेटी पंकजा मुंडे विधायक और कैबिनेट मंत्री थी, वह खुद को मुख्यमंत्री पद का दावेदार भी समझती थी। अगर सचिन पायलट भाजपा में शामिल होते हैं तो इस सूची में वह भी शामिल हो जाएंगे।
—————–
.