
राम मंदिर निर्माण के लिए पत्थरों की कमी, कैसे निपटेगी सरकार?
नई दिल्ली।
राम मंदिर निर्माण की तैयारियां शुरू हो गई हैं लेकिन दिल्ली से लेकर अयोध्या तक कुछ चर्चाएं सुनने को मिल रही हैं कि राम मंदिर निर्माण के लिए पत्थरों की कमी पड़ सकती है।
अब आप कहेंगे कि जिस राम मंदिर के लिए पूरी मोदी सरकार, बीजेपी, आरएसएस वीएचपी समेत बड़े बड़े संगठन जुटे हुए हैं उस राम मंदिर के लिए आखिर पत्थरों की कमी कैसे पड़ सकती हैं।
दरअसल यह सवाल इसलिए खड़ा हो रहा है क्योंकि अयोध्या में राम मंदिर निर्माण के लिए राजस्थान के जिस बंसी पहाड़पुर क्षेत्र में चट्टानों को काटकर लाए गए थे उसे अब प्रोटेक्टेड एरिया यानी संरक्षित क्षेत्र घोषित कर दिया गया है।
मंदिर निर्माण के लिए राजस्थान के बंसी पहाड़पुर क्षेत्र से आया पत्थर हल्का गुलाबी रंग का है और बताया जाता है कि इसकी आयु 100 साल से भी ज्यादा है। राम मंदिर निर्माण से जुड़े राम जन्मभूमि न्यास के लोगों का कहना है कि 1990 से ही जब राम मंदिर निर्माण कि कोई सूरत नजर नहीं आ रही थी विश्व हिंदू परिषद के अध्यक्ष अशोक सिंघल ने राम मंदिर का मॉडल तैयार करके पत्थरों की नक्काशी शुरू करा दी थी। बंसी पहाड़पुर से ट्रकों में भरकर चट्टानों को अयोध्या के परमहंस रामचंद्र दास के मठ में लाया गया था और वहां डेढ़ सौ से ज्यादा कारीगरों की ओर से रात दिन शिलाओ को तराशने का काम शुरू हो गया था।
राम मंदिर निर्माण से जुड़े लोगों का कहना है कि मंदिर निर्माण के लिए 4 लाख घनफुट पत्थरों की जरूरत है जबकि अभी सिर्फ 1 घनफुट पत्थर उपलब्ध है, ऐसे में शंका तो खड़ी की जा रही है कि मंदिर निर्माण के लिए पत्थरों का इंतजाम कैसे होगा लेकिन मोदी सरकार के एजेंडे में राम मंदिर सबसे ऊपर है ऐसे में लगता नहीं कि सरकार ऐसा कुछ होने देगी। मंदिर निर्माण से जुड़े लोगों का भी दावा है कि पत्थरों की कमी नहीं होगी।
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