
हरियाणा के अम्बाला मे साइंस उद्योग इन्हीं की देन:दो शिक्षकों ने शुरू की साइंस इंडस्ट्री, खुद तांगे पर सामान ढोया, अब 46 देशों में जा रहे उपकरण46 देशों में उपकरण एक्सपोर्ट करने वाले अम्बाला के साइंस उद्योग की कहानी दिलचस्प है। डेढ़ से दो हजार करोड़ रुपए का सालाना कारोबार करने वाली यह इंडस्ट्री असल में दो साइंस शिक्षकों की देन है। बात करीब सवा सौ साल पुरानी है। 1889 के आसपास हरगोलाल गोयल कैंटोनमेंट स्कूल (जहां वर्तमान में कैंट का गवर्नमेंट कॉलेज है) में फिजिक्स टीचर थे। उस वक्त स्कूल की प्रयोगशाला में इस्तेमाल होने वाले उपकरण इंग्लैंड से आते थे। लैब में उपकरण मिलना बड़ा मुश्किल था।लैब में उपकरण आसानी से मिल सकें यही सोचकर कैंट में 1896-97 में हरगोलाल साइंस ऑपरेट्स वर्कशॉप शुरू की, जाे आज हरगोलाल एंड संस के नाम से है। उपकरण बनाने में असल बूम आया वर्ष 1919 में। जगाधरी में करियाना दुकान चलाने वाले मूलचंद गर्ग के बेटे नंदलाल गर्ग जेजे थॉमसन कॉलेज ऑफ सिविल इंजीनियरिंग (अब आईआईटी रूड़की) से इंजीनियरिंग करके लौटे। कैंट के बीडी स्कूल में साइंस पढ़ाने लगे। उन्होंने देखा कि भारत में सूई तक इंग्लैंड से आती है। अंग्रेजों का सामान खरीदने से अच्छा है कि यहां साइंस उपकरणों काे बनाया जाए। एक महीने बाद ही नौकरी छोड़ दी। जेब में 75 रुपए थे।उसी साल कालीबाड़ी मंदिर के पास एक कमरे व दो कर्मचारियों (एक तांगेवाला व एक हेल्पर) के साथ दि ओरियंटल साइंस ऑपरेट्स वर्कशॉप (ओसा) शुरू की। अंग्रेज हुकूमत की नजर में यह दुःसाहस था क्योंकि नंदलाल ने विदेश से उपकरण आयात करने की बजाय खुद बनाने शुरू कर दिए थे। दिक्कतें आईं। कभी डीसी के सामने पेशी लगती थी ताे कभी लाइसेंस रद्द कर दिया जाता था। उन्होंने पहला उपकरण जो तैयार किया वो फोर्टिन बैरोमीटर था। घड़ीनुमा ये वायुदाब मापी यंत्र था। दूसरे शहरों में उपकरण सप्लाई के लिए नंदलाल खुद तांगे पर सामान लेकर स्टेशन आते-जाते थे।130 साल में आयातक से निर्यातक बनने तक का सफर1890 से पहले साइंस उपकरण ब्रिटेन से आयात होते थे। फिर अम्बाला में शुरुआत हुईउदारीकरण के दौर के बाद से छाेटे-छाेटे उपकरणों के लिए चीन पर आश्रित होते गए। अब ज्यादातर मैन्युफेक्चर ट्रेडर बनकर रह गए हैं।वर्चुअल क्लासरूम हाेने से अब लैब इक्यूपमेंट की मांग कम हाे रही है।एनाटॅामी के लिए डेड बाॅडी की बजाय वर्चुअल एनाटॅामी क्लास की डिमांड बढ़ने से इक्यूपमेंट की मांग कम है।अम्बाला में साइंस सिटी बनाने का प्रोजेक्ट था लेकिन इंद्र कुमार गुजराल सरकार के समय में जालंधर शिफ्ट हुआ। उनकी माता पुष्पा गुजराल के नाम पर साइंस सिटी बनी।1919 के बाद उपकरण यहीं बनने शुरू हुए। 1960 तक साइंस उपकरण के साथ एग्रीकल्चर व डिफेंस इक्विपमेंट बनने शुरू हुए।1975 के बाद एक्सपोर्ट शुरू हुआ।अब साइंस की छाेटी-बड़ी 1500 इकाइयां हैं। बहुत सी ऐसी हैं जिनमें एक-दो लोग घर में ही काम करते हैं।46 देशों में डेढ़ से 2 हजार करोड़ का एक्सपाेर्टसिंगापुर, मलेशिया, इंडाेनेशिया, फिलीपींस, यूएई, इराक, ईरान, सउदी अरब, इजिप्ट, अफगानिस्तान, यमन, माेरक्काे, अल्जीरिया, कीनिया, इथाेपिया, युगांडा, तंजानिया, बोत्सवाना, जायरे, जांबिया, नाइजीरिया, घाना, लाइबेरिया, कोलंबिया, ब्राजील, पेरू, अर्जेंटीना, पैराग्वे, उरुग्वे, मैक्सिकाे, यूएस, कनाडा, यूके, जर्मनी, आयरलैंड, फ्रांस, इटली, स्पेन, ग्रीस, टर्की, डेनमार्क, बर्मा, ऑस्ट्रेलिया, नेपाल, भूटान, न्यूजीलैंड में साइंस उपकरण एक्सपोर्ट हाेते हैं10 देशों से इंपोर्ट भी, सबसे ज्यादा चीन सेचीन, ताइवान, जापान, यूएस, इंग्लैंड जर्मनी, पाेलैंड, माॅरीशियस, फ्रांस, यूएई और सिंगापुर से कच्चा माल इंपोर्ट होता है। चीन से 90 फीसदी कंपोनेंट आते हैं1991 के बाद मैन्युफेक्चरिंग से ट्रेडिंग की तरफ बढ़े, यहीं से शुरू हुई चुनौतियां