
87 फ़ीसदी से ज्यादा भारतीय ग्राहक मानते हैं कि उन्हें अखबार, टीवी, रेडियो और डिजिटल विज्ञापनों में आने वाले डिस्क्लेमर यानी चेतावनी या सलाह पढ़ने में दिक्कत आती है। लोकल सर्कल में अपने एक सर्वे में यह दावा किया है। शुक्रवार को प्रकाशित सर्वे में 115000 लोगों से बातचीत की और यह लोग 320 जिलों में हैं।
उपभोक्ता मामलों के केंद्रीय मंत्रालय की सितंबर में दिशा निर्देश के मसौदे के मुताबिक ना पढ़े जाने वाले डिस्क्लेमर को गुमराह करने वाला माना जाएगा।
दिशा निर्देश में यह भी कहा गया था कि विज्ञापन की भाषा में ही डिस्क्लेमर की भाषा होनी चाहिए और साथ ही डिस्क्लेमर के अक्षर भी पढ़े जाने वाले होने चाहिए और आसानी से दिखने वाले भी होने चाहिए।
86 फीसदी मानते हैं कि विज्ञापन बच्चों के लिए अनुचित
सर्वे में यह भी पूछा गया कि किस प्लेटफार्म पर बच्चों के लिए अनुचित विज्ञापन आते हैं तो जवाब में 19 फ़ीसदी लोगों ने टेलीविजन, चार फीसदी लोगों ने जनरल वीडियो प्लेटफार्म जैसे यूट्यूब और 27 फ़ीसदी लोगों ने दोनों को बताया जबकि 2 परसेंट लोगों ने अखबारों 34 फीसदी लोगो ने तीनों मीडिया माध्यम को बताया। चार फीसदी लोगों ने कहा कि इनमें से कोई नहीं और 10 फ़ीसदी लोगों ने कहा कि वह इसे लेकर सुनिश्चित नहीं है।
73 फ़ीसदी लोगों ने कहा कि मऐसे विज्ञापन भी दिखाए जा रहे हैं जिसमें प्रोडक्ट की कीमत बहुत कम बताई जाती है लेकिन असल में वह कीमत इतनी नहीं होती बहुत ज्यादा होती है।
वही 75 फीसदी भारतीय ग्राहकों ने कहा कि मोबाइल एप्स और दूसरे ऑनलाइन प्रोडक्ट सेवा में दिखाए जाने विज्ञापन बच्चों को गुमराह करते हैं और उन्हें खर्च करने के लिए उकसाते है।
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