
Bureaucracy: योगी आदित्यनाथ सरकार ने कानपुर के पुलिस आयुक्त विजय सिंह मीणा और लखनऊ के पुलिस आयुक्त डीके ठाकुर को उनके पदों से हटा दिया है। सीएम योगी आदित्यनाथ ने आईपीएस अफसर बीपी जोगदंड को कानपुर का आयुक्त और एसपी शोडकर को लखनऊ का आयुक्त नियुक्त किया गया है। ऐसे में प्रदेश में आईपीएस ट्रांसफर में दो अहम पदों को लेकर चर्चा शुरू हो गई है। क्योंकि दोनों ही अधिकारी योगी सरकार में अहम पदों पर रहे थे और बड़ी उम्मीदों के साथ सरकार ने उन्हें इन पदों पर नियुक्त किया था। बताया जा रहा है कि पुलिस विभाग में हो रही वसूली को लेकर दोनों ही अफसरों पर गाज गिरी है।
प्रदेश की योगी सरकार ने पिछले कार्यकाल में लखनऊ समेत चार जिलों में कमिश्नरी सिस्टम लागू किया और उसके बाद 2020 में डीके ठाकुर को लखनऊ का कमिश्नर नियुक्त किया गया है। डीके ठाकुर बसपा सरकार में एक शक्तिशाली आईपीएस अधिकारी माने जाते थे। जबकि सपा सरकार में विजय सिंह मीणा का काफी प्रभाव था। लेकिन योगी सरकार ने दोनों अफसरों की पिछली पृष्ठभूमि को दरकिनार कर उन्हें अहम जिम्मेदारी दी। कानपुर में 3 जून को हिंसक घटनाएं हुईं और बिल्डरों का पुलिस कनेक्शन सामने आया। लेकिन कानपुर पुलिस दंगों के दोषियों के खिलाफ कार्रवाई करने में सक्रिय नहीं थी और हिंसा के लिए धन देने वाला बिल्डर वसी गायब हो गया। हाल ही में लखनऊ में उसे गिरफ्तार किया गया था। विजय सिंह के बारे में कहा जाता है कि कानपुर में पुलिस की स्थापना करने वाले पुलिस अधिकारियों पर ध्यान दिया जा रहा था। जबकि लखनऊ में पिछले एक महीने में कई विवाद सामने आए और पुलिस इन विवादों पर काबू नहीं पा सकी।
ठाकुर और मीणा नहीं थे डीएस चौहान की गुड बुक में
दरअसल, विजय सिंह मीणा और डीके ठाकुर को राज्य चुनावों के दौरान बहुत पहले पुलिस आयुक्त नियुक्त किया गया था। ये दोनों अधिकारी राज्य के पूर्व डीजीपी मुकुल गोयल के जमाने से ही इन पदों पर बने हुए थे। लेकिन तीन महीने पहले गोयल को पद से हटा दिया गया था और डीएस चौहान को राज्य का कार्यवाहक डीजीपी नियुक्त किया गया था। उनके पास राज्य में कानून और व्यवस्था की स्थिति को मजबूत करने की जिम्मेदारी है। बताया जा रहा है कि दोनों पुलिस अधिकारी अपनी उम्मीदों पर खरे नहीं उतर रहे थे। इतना ही नहीं दोनों के खिलाफ शिकायतें भी आ रही थीं। बताया जा रहा है कि पुलिस वसूली में पूरी तरह जुटी हुई थी। जिसके बाद दोनों अधिकारियों को वेटिंग में लगा दिया गया है।
कानपुर हिंसा के आरोपियों को मिला था वीवीआईपी ट्रीटमेंट
जब कानपुर में 3 जून को हिंसा हुई थी, तब पुलिस इस हिंसा को रोकने में नाकाम रही थी। जबकि कानपुर में कमिश्नरी सिस्टम लागू है। हिंसा के बाद पुलिस और अपराधियों के गठजोड़ के वीडियो और ऑडियो सामने आए थे। जो इस बात की पुष्टि करता है कि जिन इलाकों में हिंसा हुई थी। वहां तैनात पुलिस अधिकारियों की साजिश रचने वालों से बात हुई। इसके बाद भी पुलिस अधिकारी मातहतों को बचाते रहे। जब यह मामला सरकार के स्तर तक पहुंचा तो जांच शुरू हुई। जिसके बाद कई राज उगलने पर पता चला कि पुलिस का एक बड़ा वर्ग अपराधियों के साथ जुड़ा हुआ है. कानपुर देहात में विकास दुबे मामले में पुलिस का एक मुखबिर सामने आया था।
लूलू मॉल विवाद में हिंदूवादियों को ठाकुर ने किया अरेस्ट
हाल ही में लखनऊ का लुलु मॉल विवाद अपने चरम पर था और इसके जरिए प्रदेश की विपक्षी पार्टियों ने योगी सरकार पर निशाना साधा था। लखनऊ में शासन में बैठे अफसरों को भी डीके ठाकुर की कार्यशैली से गुस्सा आया। पुलिस को जिस तत्परता से कार्रवाई करनी चाहिए थी, उसके चलते पुलिस ने उस तरह से कोई कार्रवाई नहीं की और इस वजह से लुलु मॉल विवाद बढ़ गया। नमाज अदा करने वालों का विरोध करने वालों को पुलिस ने गिरफ्तार किया जबकि नमाज अदा करने वाले पुलिस की गिरफ्त से बाहर थे।