
देश के प्रधानमंत्री लगातार देश को आत्मनिर्भर बनने के लिए कह रहे हैं। सरकार भी अपनी पॉलिसिज में इस तरह के बदलाव कर रही है कि देश आत्मनिर्भर बने लेकिन जहां तक नई ख़ोज करने और रिसर्च के लिए ख़ोज करने का सवाल है तो भारत दुनिया के बाकी देशों के मुकाबले बहुत ही पिछड़ा हुआ है। ये वो एरिया है जो किसी भी देश को आगे लेकर जाने के लिए बहुत ही जरूरी है। पिछले साल यानि 2019 में दुनियाभर के बाकी देशों ने कुल 2,65,800 पेटेंट के आवेदन किए। इसमें भारत की हिस्सेदारी 1% से भी कम थी। इसकी वजह ये भी है कि भारत रिसर्च पर बहुत ही कम खर्च करता है।
वर्ल्ड इंटेलेक्चुअल प्रॉपर्टी ऑर्गनाइजेशन (WIPO) का आंकड़ों के मुताबिक, 2019 में पूरी दुनिया से पेटेंट के लिए कुल 2,65,800 आवेदन किए गए थे। इसमें भारत से कुल 2053 आवेदन किए गए। यानि पेटेंट आवेदन में भारत की कुल भागीदारी 1% से कम है। पेटेंट आवेदन में भारत की पूरी दुनिया में 14वीं रैंक है। इस रिपोर्ट के मुताबिक, 2019 में पेटेंट के लिए सबसे ज्यादा 58,900 आवेदन चीन से किए गए। इस प्रकार 2019 में पेटेंट फाइलिंग में भारत चीन से करीब 97 फीसदी पीछे है। पेटेंट फाइलिंग में चीन के बाद 57,840 आवेदन के साथ अमेरिका का नंबर आता है। देशों की बात तो छोड़ए कई मामलों में तो हम दुनिया की बड़ी कंपनियों से भी बहुत ही पीछे हैं। WIPO के मुताबिक, 2019 में सबसे ज्यादा पेटेंट के लिए आवेदन चीन की टेक्नोलॉजी कंपनी हुवावे ने किए। हुवावे ने 2019 में पेटेंट के लिए 4411 आवेदन किए। भारतीय कंपनियां भी पेटेंट फाइलिंग में बहुत ही पिछड़ी हुई हैं। पेटेंट फाइलिंग करने वाली कंपनियों की लिस्ट में टॉप-50 में भारत की कोई कंपनी नहीं है। वहीं, चीन की 13 कंपनियां टॉप-50 में शामिल हैं। इसमें से चार कंपनियां टॉप-10 में शामिल हैं। भारत इनोवेशनन के मामले में लंबे समय से पिछड़ा हुआ है। उसके पीछे कारण उसका आरएंडडी पर खर्च नहीं करना है। दुनिया में आरएंडडी पर खर्च करने के मामले में भारत सबसे नीचे की पायदान पर है। भारत में पिछले काफी सालों से इस सेक्टर में जीडीपी का 0.6 प्रतिशत या 0.7 प्रतिशत ही खर्च किया जाता है। जोकि दुनिया के बाकी देशों के मुकाबले बहुत ही कम है।