
हरेन्द्र नेगी
चमोली के ईराणी गांव में अचानक गांव की एक महिला जमुना देवी के पेट में बहुत तेज़ दर्द हो गया। इससे जमुना के पति और उनका पूरा परिवार परेशान हो गया। इस गांव में किसी का बीमार होना बहुत ही बड़ी समस्या है, क्योंकि किसी भी ऐसी स्थिति में गांव के कम से कम 15-20 लोगों की जरूरत होती है ताकि मरीज़ को आठ किलोमीटर दूर एक सड़क पर पहुंचाया जाता है। जहां से उसको गाड़ी से किसी प्राथमिक केंद्र पहुंचाया जा सके। दो दिन पहले जमुना देवी के साथ भी ऐसा ही हुआ।
दरअसल उत्तराखंड के बहुत सारे ऐसे गांव है जोकि आज भी बिना सड़क और बेसिक सुविधाओं की पहुंच से बहुत दूर हैं। चमोली जिले के ईराणी गांव में जैसे स्वास्थ्य सुविधा तो है ही नहीं बल्कि सड़क भी नहीं है। अगर किसी को बीमार को अस्पताल पहुंचाना होता है तो इसके लिए नदी भी पैदल पार करनी पड़ती है वो भी बहाव के बीच से फिर एक पहाड़ के गिरते मलबे को भी पार करना होता है। अगर इस बीच कोई दुर्घटना हो गई तो मरीज के साथ साथ बाकी गांव के लोगों की जान भी आफत में आ जाती है। इसी कारण से पहाड़ों से लोग अपने गांव घर छोड़कर शहरों की तरफ जा रहे हैं।
उत्तराखंड़ के पलायन आयोग की रिपोर्ट के मुताबिक उत्तराखंड के लगभग सभी जिलों से पलायन हो रहा है। लेकिन पहाड़ी क्षेत्र में आने वाले जिलों में पलायन का प्रतिशत अधिक और चिंताजनक हैं । पौड़ी, टिहरी और चमोली जैसे कुछ जिलों में पलायन का प्रतिशत 60 प्रतिशत तक पहुच गया हैं । पलायन के कारणों में आयोग की रिपोर्ट के अनुसार 50 फीसदी लोगों ने आजीविका के चलते जबकि 73 फीसदी लोगों ने बेहतर शिक्षा और स्वास्थ्य के चलते उत्तराखंड के ही शहरी क्षेत्र या अन्य राज्यों में मजबूरी में पलायन किया हैं। ईराणी गांव भी इसी तरह का एक गांव है और जमुना देवी की जो समस्या है वो उत्तराखंड के पलायन की एक बहुत बड़ी वजह है।