जम्मू-कश्मीर में राजनीतिक प्रक्रिया शुरू करने की कोशिश…

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जम्मू-कश्मीर में उपराज्यपाल बदलने के साथ ही इस केंद्र शासित प्रदेश में राजनैतिक तौर पर सरकार बनाने की कोशिशें भी शुरू हो सकती हैं। दरअसल राज्य में अब काफी बड़ी संख्या में राजनैतिक दल कोई काम चाहते हैं। जोकि चुनाव के जरिए ही हो सकते हैं। लेकिन अभी की स्थिति में चुनाव संभव नहीं है। इसलिए एक साझा सरकार के विकल्प पर भी विचार किया जा रहा है माना जा रहा है कि नव नियुक्त उप राज्यपाल मनोज सिन्हा लगभग एक दर्जन राजनीतिक सलाहकार नियुक्त करेंगे। जोकि सभी दलों से होंगे। चाहे वो बीजेपी हो, पीडीपी या नेशनल कांफ्रेस। ये सलाहकार मंत्रीमंंडल की तरह से काम करेंगे।

सूत्रों के मुताबिक पीडीपी और नेशनल कांफ्रेंस को इसके लिए तैयार करना टेढी खीर होगा। इसी वजह से उपराज्यपाल बदलें हैं, क्योंकि राजनैतिक तौर पर फैसले लेने की जरूरत होती है। जम्मू कश्मीर के उपराज्यपाल पर अब राजनैतिक सलाहकारों का चुनाव और उनकी पार्टी से मंजूरी लेना एक बड़ी चुनौती होगी।
जम्मू-कश्मीर से जुड़े उच्च पदस्थ सूत्रों के अनुसार राज्य में राजनीतिक प्रक्रिया शुरू करने के लिए सीटों के परिसीमन और उसके बाद विधानसभा चुनाव का इंतजार नहीं किया जा सकता है। यदि उसके पहले राजनीतिक प्रक्रिया शुरू नहीं की गई, तो विधानसभा चुनाव के लिए भी अनुकूल माहौल तैयार नहीं हो सकेगा। नए रूप रंग में सलाहकारों की नियुक्ति की कोशिश को इसी रूप में देखा जा रहा है। दरअसल यह प्रयोग न सिर्फ उपराज्यपाल को केंद्र सरकार या भाजपा के प्रतिनिधि होने के इमेज से बाहर निकालेगा। बल्कि जनता और राजनीतिक दलों के बीच भी विश्वास पैदा हो सकता है। कौन कौन से राजनीतिक दल इसके लिए तैयार होते हैं यह वक्त बताएगा लेकिन यह एक अवसर होगा। अगर राजनीतिक दल चाहें तो जिम्मेदारी के साथ विकास के लिए जुड़ सकते हैं। अगर वह इस जिम्मेदारी से भागेंगे तो सवाल उठाना उनके लिए आसान नहीं होगा।
सूत्रों के मुताबिक कहने को 40 हजार पंच, सरपंच और ब्लॉक डवलपमेंट कौंसिल के अध्यक्ष स्थानीय स्तर पर राजनीतिक वैक्यूम को भरने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन लंबे समय से आंतकवाद और कुप्रबंधन के शिकार रहे जम्मू-कश्मीर के लिए यह काफी नहीं है। वैसे भी पीडीपी, एनसी और काफी हद तक कांग्रेस के पंचायत चुनावों के बहिष्कार के कारण पंचों, सरपंचों और बीडीसी प्रमुखों को भाजपा के प्रतिनिधि के रूप में ज्यादा देखा जा रहा है। इसके साथ ही पंच और सरपंच सरकार के साथ जनता के बीच जुड़ाव की कड़ी बनने में अभी तक कामयाब नहीं हो पाए हैं।

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