सब कोटा – बड़े नतीजों के साथ एक राजनीतिक रूप से प्रबल कदम

सब कोटा – बड़े नतीजों के साथ एक राजनीतिक रूप से प्रबल कदम
0 0
Read Time:6 Minute, 14 Second

सब कोटा – बड़े नतीजों के साथ एक राजनीतिक रूप से प्रबल कदम

विवादित सब कोटा यानी कोटे में कोटे का मुद्दा एक बार फिर चर्चा में आ गया, जब सुप्रीम कोर्ट ने बीते गुरुवार को आदेश दिया कि राज्य अनुसूचित जाति, जनजाति और सामाजिक व पिछड़े वर्ग में अलग से वर्गीकरण कर सकते है।

राजनीतिक रूप से शक्तिशाली माने जाने वाले इस कदम से देश भर में बड़े नतीजे सामने आ सकते हैं क्योंकि आरक्षित वर्ग में शामिल
कई जातियां यह आरोप लगाती रही है कि उनके साथ भेदभाव हो रहा है। उनका आरोप है कि कुछ शक्तिशाली और प्रभावशाली समूह उनके हक को मार रहा है और कोटे का सारा फायदा उठा रहा है।

भाजपा शासित कर्नाटक में सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद तय किया है कि वह भी आरक्षित कोटे के अंदर कोटा देने की संभावनाओं को तलाशेगा। कई राज्य सरकारें सफतापूर्वक कोटे में कोटा का फार्मूला अपने यहां 50 फ़ीसदी आरक्षण की अनुमति सीमा के तहत लागू कर चुकी हैं।

जनता दल यूनाइटेड के महासचिव और पूर्व राज्यसभा सांसद केसी त्यागी इस मामले के बड़े जानकार हैं। राजनीति में विवादित होने के बावजूद इस कदम को वह ठीक मानते हैं और और कहते हैं कि इसके विरोध करने का कोई कारण नहीं है।

त्यागी ने कहा,” हरियाणा तमिलनाडु और राजस्थान में सब कोटा की व्यवस्था पहले से ही लागू है, वास्तव में बिहार में सबसे पहले पूर्व मुख्यमंत्री कर्पूरी ठाकुर ने 1978 में इस फार्मूले को लागू किया था। उनका यह कदम भी सुप्रीम कोर्ट की ओर से लगाई गई 50 फ़ीसदी आरक्षण की सीमा को पार नहीं करने के आदेश का उल्लंघन नहीं था। सुप्रीम कोर्ट ने 1992 में इंदिरा साहनी बनाम भारत सरकार मामले में यह फैसला लिया था। ”

बिहार में गैर पासवान (पूर्व केंद्रीय मंत्री रामविलास पासवान समुदाय) की आशंकाओं को बीते समय में नीतीश कुमार आवाज दे चुके है। उन्होंने महादलित आयोग का गठन किया था और अति पिछड़ा वर्ग आयोग का नहीं बनाया था।

बिहार में चुनाव नजदीक आते ही जदयू के नेता नीतीश कुमार के इस काम को जोर शोर से उठा रहे हैं और कह रहे हैं कि नीतीश ने ही इन समुदाय के सपनों को पूरा किया है, जिसकी आधारशिला अति पिछड़े वर्ग नाई समुदाय के पूर्व मुख्यमंत्री कर्पूरी ने इसकी आधारशिला रखी थी।

उत्तर प्रदेश में भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भाजपा का उदय तब हुआ जब गैर यादव पिछड़ी और गैर जाटव दलित जातियों ने उनका समर्थन किया। ओबीसी वर्ग में शामिल यादव जाति पर समाजवादी पार्टी तो दलित वर्ग में शामिल जाटव जाति पर बसपा की पकड़ के चलते गैर यादव और गैर जाटव जातियों ने भाजपा को समर्थन देना ठीक समझा।

बिहार के आगामी विधानसभा चुनाव से पहले जहां जेडीयू इस मुद्दे को शहर शहर से जाकर कह रही है कि नीतीश कुमार ने ही कुछ जातियों के पंजे से निकालकर आरक्षण को सभी पिछड़ी जातियों तक पहुंचाया है तो विपक्षी दल आरजेडी जिसका प्रमुख वोटबैंक यादव है, वह इस मुद्दे पर बोलने में सतर्कता बरत रहा है और कह रहा है कि कोटे में कोटा के फार्मूले को लागू करने से पहले सामाजिक आर्थिक आधार पर जनगणना के आंकड़ों को सार्वजनिक किया जाना चाहिए।

अति पिछड़े वर्ग के समर्थन के बावजूद भाजपा जातिगत जनगणना पर ध्यान केंद्रित होने से परेशान हैं। उसका मानना है कि जातिगत जनगणना की वजह से ओबीसी बनाम अन्य का मुद्दा राजनीति के केंद्र में आ जाएगा और इस मुद्दे पर विपक्षी पार्टियों को संभालना मुश्किल होगा क्योंकि बिहार और उत्तर प्रदेश में उनके पास पिछड़े वर्ग से जुड़े प्रमुख चेहरे हैं।

2012 में जब पूर्व अल्पसंख्यक मामलों के मंत्री सलमान खुर्शीद ने अल्पसंख्यक सब कोटा का मुद्दा छेड़ा था तो चुनाव आयोग ने उनके खिलाफ कार्यवाही की थी और यह मामला सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचा था।

इससे पहले आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट की ओबीसी श्रेणी में अल्पसंख्यकों के लिए 4:5 फीसदी के सब कोटे के फैसले को खारिज कर चुका है।

वही सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को इस मामले को 7 सदस्य वाली बड़ी बेंच को अंतिम निर्णय लेने के लिए सौंपा है। इस मुद्दे पर अभी से राजनेताओं के बीच बिछड़ गई है कई राजनेताओं का मानना है की इस मुद्दे को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती जरूर मिलेगी।

Happy
Happy
0 %
Sad
Sad
0 %
Excited
Excited
0 %
Sleepy
Sleepy
0 %
Angry
Angry
0 %
Surprise
Surprise
0 %

Average Rating

5 Star
0%
4 Star
0%
3 Star
0%
2 Star
0%
1 Star
0%

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *