
नई दिल्ली: भारत सरकार ने कोविड -19 को नियंत्रित करने के लिए लगाए गए लॉकडाउन के कारण तपेदिक (टीबी) की सूचनाओं में 60 प्रतिशत की गिरावट दर्ज की है। सरकार ने अब टीवी की रोकथाम के लिए एक तीव्र प्रतिक्रिया योजना बनाई है।
राष्ट्रीय टीबी कार्यक्रम ने राज्यों को दिए अपने संवाद में यह आशंका व्यक्त की है कि अनियंत्रित मामले और उच्च घरेलू संचरण बीमारी का कारण बन सकते हैं। अनुमानित है कि 5 लाख अतिरिक्त मामले और अगले पांच वर्षों में 1 लाख अधिक मौतें हो सकती है।
कोविड की तरह टीबी भी ड्रॉपलेट द्वारा फैलता है। यह एक जीवाणु संक्रमण है जो मुख्य रूप से फेफड़ों को प्रभावित करता है। यह शरीर के अन्य अंगों और हड्डियों आदि को भी प्रभावित कर सकता है।
राज्य सरकारों को लिखे गए पत्र में, 4 सितंबर को संशोधित राष्ट्रीय टीबी नियंत्रण कार्यक्रम (आरएनटीसीपी) के परियोजना निदेशक डॉ केएस सचदेवा ने लिखा है, “एक टीबी रोगी का अगर उपचार नहीं हुआ है, तो वह एक वर्ष में 10-15 व्यक्तियों को संक्रमित कर सकता हैं। ऐसी परिस्थितियों में, जब टीबी के मरीज स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुंच नहीं बना पा रहे हैं और अपने घरों के भीतर ही सीमित हैं, घरेलू संपर्कों में सक्रिय तीव्र संचरण की संभावना है। ”
उन्होंने कहा: “स्टॉप टीबी पार्टनरशिप द्वारा प्रकाशित टीबी महामारी विज्ञान पर COVID-19 प्रतिक्रिया के संभावित प्रभाव को समझने के लिए हाल ही में किए गए मॉडलिंग अध्ययन से संकेत मिलता है कि अगले 5 सालों में टीबी के 514,370 अतिरिक्त मामले और 1,51,120 टीबी से अधिक मौतें होंगी। ”
तपेदिक उन्मूलन राष्ट्रीय योजना एक सरकारी कार्यक्रम है जो 2025 तक भारत में बीमारी को खत्म करने का लक्ष्य रखता है । इस कार्यक्रम के मुताबिक इस बीमारी से हर साल अनुमानित 4.8 लाख भारतीय मरते है। यानी दिन 1,400 से अधिक मौतें। कोरोना वायरस से मरने वाले मौतों की संख्या भी इस स्तर पर पहुंचने की खतरनाक स्थिति बन रही है सोमवार को कोरोना से 1100 लोगों की मृत्यु हो गई।
डॉक्टर सचदेवा के पत्र के मुताबिक भारत में टीवी की रोकथाम के लिए चल रहे राष्ट्रीय कार्यक्रम 24 मार्च तक सही रास्ते पर था लेकिन कोविड-19 लॉकडाउन की वजह से इस कार्यक्रम की प्रमुख गतिविधियां प्रभावित हुई हैं जिसके कारण टीवी के मामलों की रिपोर्टिंग में लगभग 60% की गिरावट आई है यही इस वजह से हुआ है कि टीवी मरीज अस्पताल तक पहुंच नहीं पाए जबकि इस कार्यक्रम के तहत स्वास्थ्य कर्मी भी मरीज तक नहीं पहुंच पाए।