काशी विश्वनाथ मंदिर से सटी ज्ञानवापी मस्जिद के मुकदमे की सुनवाई एक सितंबर को…..

काशी विश्वनाथ मंदिर से सटी ज्ञानवापी मस्जिद के मुकदमे की सुनवाई एक सितंबर को…..
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राम मंदिर के भूमिपूजन के साथ ही राम मंदिर का निर्माण कार्य शुरू हो गया है। लेकिन इसके साथ ही काशी और मथुरा के मंदिरों को भी मुस्लिम कब्जों से आज़ाद कराने की मांग उठने लगी है। काशी के मंदिर के साथ लगी मस्जिद को हिन्दुओं को सौंपने का एक मुकदमा जोकि 1991 में काशी की दीवानी अदालत में दाखिल हुआ था। उसकी सुनवाई एक सितंबर को होनी है। जोकि बहुत ही महत्वपूर्ण हैं। हिंदू पक्ष की मांग है कि विवादित क्षेत्र स्वयंभू विश्वेश्वर का ही अंश है, इसलिए वह इलाका हिंदुओं को सौंप दिया जाए। मुस्लिम पक्ष ने लिखित में कोर्ट से कहा है कि विवादित मस्जिद ‘अहल ए सुन्नत’ से वहां कायम है, दावा कि जब से कुरान है, तब से मस्जिद है, जो ऐतिहासिक प्रमाणों के विपरीत है।
दरअसल 90 के दशक की शुरुआत से ही पूरे देश में राम मंदिर की गुंज थी और ये आंदोलन इतना तेज़ हुआ कि कारसेवकों ने 6 दिसंबर 1992 में मस्जिद का ढांचा गिरा दिया। इसके बाद पूरे देश में दंगे भी हुए और ‘अयोध्या तो झांकी है, काशी मथुरा बाकी है’ जैसे नारे उछाले जाने लगे और इसके प्रभाव से महादेव की नगरी काशी में भी अछूती नहीं रही।
उस दौर में एक तरफ यह आंदोलन सड़कों पर हिंसक रूप ले रहा था तो दूसरी तरफ अदालतों में भी मंदिर-मस्जिद की कानूनी लड़ाई तेज हो रही थी। इसी बीच काशी की दीवानी अदालत में भी एक मुक़दमा दाखिल हुआ जो आज भी लंबित है। यही वो मुक़दमा है जो काशी विश्वनाथ मंदिर से सटी ज्ञानवापी मस्जिद का भविष्य तय करेगा और जिसके फैसले का इंतजार देश के करोड़ों लोगों को है।
दरअसल इन दिनों श्री काशी विश्वनाथ धाम कॉरिडोर का काम तेज़ी से चल रहा है। इसके लिए जमीन अधिग्रहण में 390 करोड़ रुपए लगे हैं। जबकि इसके निर्माण में 340 करोड़ रुपए का खर्च आएगा। कुल मिलाकर करीब 800 करोड़ रुपए की योजना होगी। श्री काशी विश्वनाथ धाम कॉरिडोर के लिए जमीन अधिग्रहण में 390 करोड़ रुपए लगे हैं। जबकि इसके निर्माण में 340 करोड़ रुपए का खर्च आएगा। कुल मिलाकर करीब 800 करोड़ रुपए की योजना होगी। श्री काशी विश्वनाथ धाम कॉरिडोर में करीब 3100 वर्ग मीटर में मंदिर परिसर बनेगा। पूरे परिसर में मकराना और चुनार के पत्थर लगेंगे। करीब 3100 वर्ग मीटर में मंदिर परिसर बनेगा। पूरे परिसर में मकराना और चुनार के पत्थर लगेंगे।

काशी विश्वनाथ मंदिर का इतिहास अयोध्या की तरह विवादित नहीं है। यहां कई बातें क्लियर हैं जिन्हें सभी पक्ष सहज स्वीकार करते हैं। मसलन, यह तथ्य विवादित नहीं है कि ज्ञानवापी मस्जिद का निर्माण औरंगजेब ने करवाया था और यह निर्माण मंदिर तोड़कर किया गया था। औरंगजेब से पहले भी काशी विश्वनाथ मंदिर कई बार टूटा और कई बार बनाया गया। लेकिन साल 1669 में औरंगजेब ने इसे तोड़कर वहां ज्ञानवापी मस्जिद बनवा दी। मंदिर को फिर से बनाने के कई असफल प्रयासों के बाद आखिरकार साल 1780 में अहिल्या बाई होलकर ने मस्जिद के पास एक मंदिर का निर्माण करवाया और यही आज काशी विश्वनाथ मंदिर कहलाता है।
ये इतिहास का वह पहलू है जो निर्विवाद है। इससे अलग जो विवादित पहलू हैं उन्हें समझने की कोशिश न्यायालय में चल रहे मुकदमे से करते हैं। यह मुक़दमा है ‘वाद संख्या 610 सन 1991।’ यह एक रिप्रेसेन्टेटिव सूट यानी प्रतिनिधित्व वाद है और इसका नाम है ‘प्राचीन मूर्ति स्वयंभू भगवान विश्वेश्वर व अन्य बनाम अंजुमन इंतजामिया मसाजिद व अन्य।’
साल 1991 में यह मुक़दमा काशी के तीन लोगों ने दाखिल किया था। इनमें पहले थे पंडित सोमनाथ व्यास, दूसरे थे पंडित रामरंग शर्मा और तीसरे थे हरिहर पांडेय। इन तीनों के अलावा इस मुक़दमे के चौथे वादी थे ‘स्वयंभू भगवान विश्वेश्वर।’ इस पक्ष की पैरवी बीते कई सालों से अधिवक्ता विजय शंकर रस्तोगी कर रहे हैं। वे कहते हैं, ‘हमारा पक्ष बेहद मज़बूत है और हमें एक सौ एक प्रतिशत विश्वास है कि फैसला हमारे पक्ष में होगा।’ दूसरी तरफ़ अंजुमन इंतजामिया मसाजिद के संयुक्त सचिव और प्रवक्ता एसएम यासीन भी ठीक ऐसा ही दावा करते हुए कहते हैं, ‘इस मामले में हमारा पक्ष पूरी तरह से संविधान सम्मत है और हम आश्वस्त हैं कि क़ानूनन हमारा पक्ष ज़्यादा मज़बूत है।’
1991 से चल रहा यह पूरा मामला मुख्यतः उसी साल लागू हुए एक केंद्रीय कानून के इर्द-गिर्द घूमता है। इस कानून का नाम है ‘प्लेसेज ऑफ वर्शिप (स्पेशल प्रोविजन) ऐक्ट, 1991’ या उपासना स्थल (विशेष प्रावधान) अधिनियम, 1991। यह क़ानून कहता है कि 15 अगस्त 1947 के दिन जो धार्मिक स्थल जिस समुदाय या संप्रदाय के पास था, वो अब भविष्य में भी उसी का रहेगा। यानी आज़ादी के दिन जहां मंदिर था वहां अब मंदिर ही रहेगा भले ही आज़ादी से पहले वहां मस्जिद हुआ करती हो। और ऐसे ही जहां मस्जिद है वहां अब मस्जिद की ही दावेदारी रहेगी भले ही वहां पहले कोई मंदिर क्यों न रहा हो। अयोध्या को इस क़ानून की परिधि से बाहर रखा गया था लेकिन काशी समेत तमाम अन्य धर्मस्थलों पर यह लागू हुआ और आज भी लागू है।
यही कारण है कि तमाम हिंदू संगठन इस क़ानून को में संशोधन की मांग उठाते रहे हैं। इस संबंध में सुप्रीम कोर्ट में भी एक याचिका दाखिल की गई है जिसका नतीजा आना अभी बाकी है।
महारानी अहिल्‍याबाई ने देश के कई मंदिरों का निर्माण और जीर्णोद्धार कराया। उन्होंने बनारस के मशहूर काशी विश्‍वनाथ मंदिर का निर्माण करवाया था। महारानी अहिल्‍याबाई ने देश के कई मंदिरों का निर्माण और जीर्णोद्धार कराया। उन्होंने बनारस के मशहूर काशी विश्‍वनाथ मंदिर का निर्माण करवाया था।

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