
राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (NCPCR) के देश में चल रहे विभिन्न सरकारी और गैर सरकारी बाल गृहों और अनाथआश्रमों का सोशल ऑडिट कराने से देश का एक विशेष तबका काफी परेशान हैं। पिछले 70 सालों से इस बाल गृहों के नाम पर विदेशी चंदे और धर्म परिवर्तन जैसे कामों में लिप्त इन लोगों अब विभिन्न सोशल मीडिया तथा पारंपरिक मीडिया के जरिए अब NCPCR को बदनाम करने की कोशिश की जा रही है।
हाल ही में राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग की पूर्व अध्यक्ष शांता सिन्हा तथा पूर्व सदस्य वंदना प्रसाद ने लेख लिखे हैं। जिनमें आयोग के इन फैसलों के खिलाफ काफी कुछ लिखा है। दूसरी ओर आयोग ने ये कार्रवाई सुप्रीम कोर्ट के दिशा-निर्देशों के बाद की है।
दरअसल आयोग ने माननीय सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर देशभर के सभी सरकारी व गैरसरकारी बालगृहों/अनाथ अश्रमों का सोशल ऑडिट करवाया है। प्राप्त नतीजों के आधार पर आयोग ने 08 राज्यों को बच्चों के परिवार में पुनर्वास के लिए निर्देश जारी किया। यानि जो बच्चे अनाथालयों में रह रहे थे। उन्हें अपने परिवार में वापस भेजने के लिए कहा गया। जिनमें केरल, तमिलनाड़ु, कर्नाटक, आंध्राप्रदेश, तेलंगाना, महाराष्ट्र तथा पूर्वोत्तर भारत के दो राज्य मिजोरम और मेघायल शामिल हैं। उल्लेखनीय है कि देशभर में कुल 2,56,369 बच्चे अनाथ आश्रमों में रह रहे हैं, जिनमें से 70 प्रतिशत बच्चे इन 08 राज्यों के अनाथ आश्रमों में रह रहे हैं। जानकारों के मुताबिक बाहरी तौर पर देखने में यह सामान्य लग सकता है किंतु इसके पीछे एक पूरा गैंग काम कर रहा है। जोकि चर्च के चंदे के जरिए से ये धंधा चला रहा है। इन राज्यों में मिश्नरी और वामपंथी एजेंडे को चलाने वाले गुर्गे ज्यादा मजबूत हैं और सबसे ज्यादा बालगृह भी इन्ही राज्यों में स्थित हैं, जिनके आका विदेशों में बैठे चर्च हैं। असल में ये लोग मुफ्त खाने और शिक्षा के नाम पर गुप्त रूप से इनमें बच्चों के धर्मपरिवर्तन की गतिविधि को अंजाम देते हैं। इसपर आयोग के ताजा आदेश के बाद बच्चों को वापस अपने घरों में भेजना होगा। इससे विदेशी चंदे का ये पूरा नेटवर्क टूट जाएगा और इस चंदे पर अपने रोटियां सेंकने वालों को परेशानी होगी।
आयोग के इस फैसले के बाद माना जा रहा था कि एक पूरा गैंग आयोग को बदनाम करने की कोशिश करेगा और वैसा हुआ भी। शांता सिन्हा, वंदना प्रसाद तथा हर्ष मंदर जैसे लोग पहले से ही भारत में बच्चों के धर्मांतरण के ऐजेंडे पर काम कर रहे हैं। यही कारण है कि आयोग में अध्यक्ष के तौर पर अपने कार्यकाल में शांता सिन्हा ने न तो कभी बालगृहों में रहने वाले बच्चों की कोई सुध ली और न ही बच्चों के हित में कोई फैसला लिया। हाल ही में दक्षिणी दिल्ली में एक बालगृह का दौरा भी आयोग ने किया था। इसमें 2012 में एक यौन शोषण की एक बड़ी घटना हुई थी। जिसे दबा दिया गया था और इसको दबाने में शांता सिन्हा तथा वंदना प्रसाद जैसे लोगों की बड़ी भूमिका थी। इस बालगृह को हर्ष मंदर ने शुरू किया था। यौन शोषण जैसे जघन्य अपराध को दबाना सीधे-सीधे इनके दोगले चरित्र को उजागर करता है। वंदना प्रसाद की बात करें तो वह भी एक ऐसी ढोंगी सोशल एक्टीविस्ट हैं, जो आयोग में अपनी जिम्मेदारी निभाने में नाकाम रही और इस्तीफा देकर भाग गई। यहां यह भी उल्लेख करना अतिआवश्यक है कि वंदना प्रसाद उस बालगृह में लगातार जाती रही हैं जहां बच्चों से यौन शोषण का मामला प्रकाश में आया था। ऐसे लोगों से बाल अधिकार के पक्ष में खड़े होने की उम्मीद भी कैसे की जा सकती है। अब जब आयोग ने बाल हित में उस बालगृह का दौरा किया है तो वह भी उनसे देखा नहीं जा रहा है।
उल्लेखनीय है कि शांता सिन्हा ने आय़ोग में अपने कार्यकाल के दौरान चर्च के ऐजेंडे को चलाने के लिए आयोग के फंड को गलत तरीके से अपनी संस्था MV Foundation को हस्तांतरित किया औऱ आय़ोग को हमेशा चर्च के एजेंडे को चलाने वाले संस्थान के रूप में कठपुतली की तरह इस्तेमाल किया। शांता सिन्हा तथा बाल हित का मुखौटा पहने उनके अन्य सहयोगी हमेशा बच्चों को बालगृहों और अनाथ आश्रमों में रखने के पक्ष में रहे हैं। इसका प्रमुख कारण यह है कि बच्चों के नाम पर विदेशी चंदा लिया जा सके। जो कि विदेशों में स्थित चर्चो के माध्यम से मुहैया कराया जाता है और बाद में उसका इस्तेमाल भारत में बालगृहों में रह रहे बच्चों के धर्म परिवर्तन के लिए किया जाता रहा है। इसी दोगले चरित्र और देश विरोधी गतिविधि को आयोग ने सबसे पहले उजागर करने का काम किया है। जिसके बाद से आयोग को बदनाम करने की कोशिश की जा रही है।
जो लोग बालगृहों का अर्थशास्त्र जानते हैं, उनको पता है कि भारत में चर्च और वामपंथी एजेंडे के तहत बच्चों को अनाथ आश्रमों में रखा जाता है। गरीब परिवारों के बच्चों को वहां शिक्षा और खाने के नाम पर रखा जाता है। जहां उन्हें चर्च की किताबें पढ़ाई जाती है। ताकि वो चर्च को मानने लगें। इस तरह से इन बच्चों का धीरे धीरे धर्म परिवर्तन कर दिया जाता है। इन बालगृहों या अनाथालयों के नाम पर विदेशों से बड़ा मोटा फंड आता है। जो मुख्यतौर पर चर्च का पैसा होता है। इसी पैसे पर एक विशेष तबका नज़र रखता है और चर्च के हिसाब से काम करता है। इनमें शांता सिन्हा और हर्ष मंदर जैसे लोग शामिल हैं। हालांकि कहने को शांता सिन्हा FCRA Expert हैं, जिसके तहत वो इस फंड को यहां एडजस्ट कराती है। लेकिन FCRA Act में बदलाव कर तथा JJ Act को लाकर मोदी सरकार ने इन देश विरोधी गतिविधियों पर लगाम लगाने का महत्वपूर्ण कार्य किया है।
चूंकि अब आयोग ने इन अनाथालयों के बच्चों को अपने परिवारों में भेजने का निर्देश दिया है। लिहाजा इन बालगृहों और इनसे जुड़े संगठनों ने लामबंदी कर आयोग के ताजा निर्देश को बाल विरोधी तथा विधि के खिलाफ बताया है। इस संबंध में इन संगठनों ने हाल ही में एक स्टेटमेंट भी जारी किया है, जिसमें आयोग के आदेश की गलत व्याख्या कर एक वैधानिक संस्था की छवि को धूमिल कर रहे हैं। जबकि इसके पीछे की मंशा केवल उनकी यह पीड़ा है कि बच्चों की एवज में जारी धंधा अब चौपट होने जा रहा है।
भारत को तोडने वाली सभी शक्तियों के पैसों से संचालित सभी संगठन पर बैन लगाया जाए या फिर सरकार द्वारा इनको अच्छे से मॉनिटर किया जाए।